क्यों अपने ही दिल से मजबूर हो जाते हैं हम,
क्यों पास रहते हुए भी दूर हो जाते हैं हम।
क्यों पास रहते हुए भी दूर हो जाते हैं हम।
कभी दुनिया की रश्मों-रिवाजों की वजह से,
तो कभी अपने ही रिश्तों-नातों की वजह से,
क्यों साथ चलते हुए भी जुदा हो जाते हैं हम।
कभी आहटों से पहचान लेते थे एक दूसरे को,
तो कभी बिन कुछ बोले समझ लेते थे एक दूसरे को,
क्यों कभी सामने आते ही अनजाने बन जाते हैं हम।
कभी सपनों में होती थी रोज मुलाकातें,
तो कभी ख्यालों में होती थी बहुत सी बातें,
क्यों आज एक दूसरे से नज़रें चुराते हैं हम।
(राहुल द्विवेदी)