Sunday, September 9, 2012

कभी कभी

कभी कभी वो पूछती है मुझ से,
मेरा रिश्ता क्या है उस से,
क्यों करता हूँ उस पर यकीन इतना,
क्यों चाहता हूँ उसको बेपनाह?

हंसी आती है मुझे सुनकर बातें उसकी,
सोचता हूँ कैसी नादान है ये,
जो कुछ भी नहीं जानती,
बिन कहे मेरी बातें नहीं समझ पाती।

कैसे बताऊँ मैं उसको की,
मेरे सपनों की बुनियाद है वो,
मेरी दुनिया की शुरुआत है वो,
अधूरी ज़िन्दगी जी रहा था मैं अभी तक,
मेरी सम्पूर्णता का एहसास है वो।

फिर सोचता हूँ ,
जब वो मेरे पास आएगी,
मेरी बाहों में खुद को महफूज पाएगी,
मेरे मन की सारी बातें समझ जायेगी,
अपने सवालों के जवाब खुद ही जान जाएगी।

                                      (राहुल द्विवेदी)