नवरात्री,
एक पावन पर्व,
नौ दुर्गा, नौ देवी,
नौ माता, नौ कन्यायें,
पूजा करता इनकी,
ये हमारा समाज।
दूसरी ओर,
घर में आती कन्या का,
पहले ही पता लगाता,
उसकी मौत की साजिश करता,
मानवता को लज्जित करता,
ये हमारा समाज।
समाज के ये दो चेहरे,
कौन सा है सच्चा,
और कौन सा झूठा,
निर्णय करना होगा हमको,
देवी, दुर्गा, जननी है,
या फिर कन्या है अभिशाप।
बंद करो ये अत्याचार,
खिलने दो कलियाँ आँगन में,
वरना एक दिन पछताओगे,
लड़के को जन्म देने वाली माँ,
घर को सवाँरने वाली बहू,
फिर किस दुनिया से लाओगे।
(राहुल द्विवेदी)
एक पावन पर्व,
नौ दुर्गा, नौ देवी,
नौ माता, नौ कन्यायें,
पूजा करता इनकी,
ये हमारा समाज।
दूसरी ओर,
घर में आती कन्या का,
पहले ही पता लगाता,
उसकी मौत की साजिश करता,
मानवता को लज्जित करता,
ये हमारा समाज।
समाज के ये दो चेहरे,
कौन सा है सच्चा,
और कौन सा झूठा,
निर्णय करना होगा हमको,
देवी, दुर्गा, जननी है,
या फिर कन्या है अभिशाप।
बंद करो ये अत्याचार,
खिलने दो कलियाँ आँगन में,
वरना एक दिन पछताओगे,
लड़के को जन्म देने वाली माँ,
घर को सवाँरने वाली बहू,
फिर किस दुनिया से लाओगे।
(राहुल द्विवेदी)